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Saturday, 9 September 2017

जीवन में कभी अपमानित महसूस नहीं करोगे अगर याद रखोगे यह कहानी



शाम के समय महात्मा बुद्ध पेड के निचे एक शिला पर बैठे हुए थे। वह डूबते सूर्य को एकटक देख रहे थे। तभी उनका शिष्य आया और गुस्से में बोला गुरुजी मोहनजी नाम के जमींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत चलें उसे उसकी मूर्खता का सबक सिखाना होगा। महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले प्रिय तुम बौद्ध हो सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती। तुम इस घटना को भुलाने की कोशिश करो। जब घटना को भूला दोगे तो अपमान कहां बचेगा।




लेकिन तथागत उस मूर्ख ने आपके प्रति भी अपशब्दों का उपयोग किया है। आपको चलना ही होगा। आपको देखते ही वह अवश्य शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए की क्षमा मांगेगा। बस मैं संतुष्ट हो जाऊंंगा। महात्मा बुद्ध समझ गए कि शिष्य में प्रतिकार की भावना प्रबल हो उठी है। इस पर सदुपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुछ विचार करते हुए वह बोले अच्छा वत्स यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही मोहनजी के पास चलूंगा और उसे समझाने की पूरी कोशिश करूंगा। बुद्ध ने कहा हम सुबह चलेंगे।


                                             

सुबह हुई बात बीति-गई हो गई। शिष्य अपने काम में लग गया और महात्मा बुद्ध अपनी साधना में। दूसरे दिन जब दोपहर होने पर भी शिष्य ने बुद्ध से कुछ नहीं कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा आज मोहनजी के पास चलोगे ना। नहीं गुरुवर! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी। मुझे अपनी गलती पर भारी पश्चाताप है। अब मोहनजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं। तथागत ने हंसते हुए कहा यदि ऐसी बात है तो अब जरूर ही हमें मोहनजी के पास चलना होगा। अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं करोगे।


प्रकार हमें दूसरों से हुई भूल को माफ़ कर देना चाहिए और खुद से हुई भूल के लिए दूसरों से माफी मांग लेनी चाहिए।


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